जन संस्कृति मंच, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अशोक वोरा और दर्शनशास्त्र विभाग की प्रोफ़ेसर सुधा चौधरी पर किए जा रहे हमलों की भर्त्सना करता है। संघ से जुड़े संगठन सनातन धर्म के किसी भी पहलू से असहमत या उस पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखनेवालों पर हमले करते ही रहे हैं लेकिन इस बार इन्होने एक ऐसे व्याख्यानदाता को निशाना बनाया है जो हिन्दू प्रतीकों और मूर्तियों के पाश्चात्य विद्वानों द्वारा किए गए कथित 'कुपाठ' का विरोध कर रहा था। यह पूरा प्रकरण यह बताता है कि हिन्दू धर्म का बचाव करनेवाले भी इन शक्तियों के आक्रमण की जद से बाहर नहीं हैं। ऐसा लगता है कि अब इन ताकतों ने ज्ञान और बौद्धिक कर्म मात्र को अपराध मान लिया है।
इस भाषण की रिकार्डिंग मौजूद है जिसे सुनकर हिन्दू परम्पराओं में अहैतुक आस्था रखनेवाला कोई व्यक्ति प्रसन्न ही हो सकता है। लेकिन इस भाषण के खिलाफ स्थानीय मीडिया के एक हिस्से की सहायता से जो तूफ़ान खड़ा किया गया, उससे सिर्फ यही समझ में आता है कि यह सब पूर्व-नियोजित था और वक्ता कुछ भी बोलते या मौन भी रहते, तो भी संभवतः विश्विद्यालय की अकादमिक दुनिया पर आतंक कायम करने की मुहिम के तहत यह सब किया ही जाता।
यह एक तरह से अकादमिक दुनिया से जुड़े सभी विद्वानों को दी गयी चेतावनी है कि वे अपने सारे क्रिया-कलाप को विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय से बाहर की राजनैतिक और वैचारिक सत्ता के इशारों पर संचालित करें। संसद में असहिष्णुता को लेकर चली लम्बी बहस के बाद घटी यह घटना बताती है कि संसद में सरकार चाहे जो बयान दे, जगह-जगह संघ से जुड़े संगठन अकादमिक स्वायत्तता, बौद्धिक स्वातंत्र्य, अभिव्यक्ति के अधिकार तथा बहस की लोकतान्त्रिक संस्कृति के खिलाफ संगठित अभियान चलाते ही रहेंगे और राजस्थान की तरह अन्य भाजपाई सरकारें उन्हें अपना समर्थन देती रहेंगी।
इस भाषण की रिकार्डिंग मौजूद है जिसे सुनकर हिन्दू परम्पराओं में अहैतुक आस्था रखनेवाला कोई व्यक्ति प्रसन्न ही हो सकता है। लेकिन इस भाषण के खिलाफ स्थानीय मीडिया के एक हिस्से की सहायता से जो तूफ़ान खड़ा किया गया, उससे सिर्फ यही समझ में आता है कि यह सब पूर्व-नियोजित था और वक्ता कुछ भी बोलते या मौन भी रहते, तो भी संभवतः विश्विद्यालय की अकादमिक दुनिया पर आतंक कायम करने की मुहिम के तहत यह सब किया ही जाता।
यह एक तरह से अकादमिक दुनिया से जुड़े सभी विद्वानों को दी गयी चेतावनी है कि वे अपने सारे क्रिया-कलाप को विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय से बाहर की राजनैतिक और वैचारिक सत्ता के इशारों पर संचालित करें। संसद में असहिष्णुता को लेकर चली लम्बी बहस के बाद घटी यह घटना बताती है कि संसद में सरकार चाहे जो बयान दे, जगह-जगह संघ से जुड़े संगठन अकादमिक स्वायत्तता, बौद्धिक स्वातंत्र्य, अभिव्यक्ति के अधिकार तथा बहस की लोकतान्त्रिक संस्कृति के खिलाफ संगठित अभियान चलाते ही रहेंगे और राजस्थान की तरह अन्य भाजपाई सरकारें उन्हें अपना समर्थन देती रहेंगी।
मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग की प्रोफ़ेसर सुधा चौधरी ने विश्वविद्यालय और इंडियन काउंसिल ऑफ फिलोसॉफिकल रिसर्च के सहयोग से 03 दिसंबर, 2015 को 'धार्मिक संवाद: आधुनिक अनिवार्यता' शीर्षक विस्तार व्याख्यान हेतु दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अशोक वोरा को आमंत्रित किया था। दिल्ली विश्विद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर वोरा ने हिंदू परम्पराओं की विदेशी विद्वानों द्वारा की गई कथित एकायामी दुर्व्याख्याओं का उदाहरण पेश करते हुए अपने तर्कों से उनका खंडन किया था। उनके मुताबिक ये व्याख्याएँ विकृत और असंगत हैं। उनके भाषण की रिकार्डिंग मौजूद है। खंडन करने की नीयत से प्रो. वोरा ने विदेशी विद्वानों की व्याख्याओं के जो नमूने पेश किये, उन्हें उनके भाषण से अलगा कर सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया और स्थानीय अखबारों में भड़काऊ ख़बरें छपीं। प्रो. वोरा को शायद सपने में भी गुमान नहीं रहा होगा कि 'भक्त' हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा करने पर भी उत्तेजित हो सकते हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 'रणबांकुरों' ने दोनों विद्वानों के पुतले जलाए और सुधा चौधरी की बर्खास्तगी से लेकर गिरफ्तारी तक की मांग रखी। 07 दिसंबर को विद्यार्थी परिषद के नेता उच्च शिक्षा मंत्री से मिले। हिंदुत्ववादी संगठनों ने 08 दिसंबर को उदयपुर शहर के व्यस्ततम चौराहे को जाम कर दिया। उपद्रव के बाद राजस्थान के उच्च शिक्षा मंत्री ने प्रोफेसर वोरा की निंदा की और खुद एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया। इसी दिन राजस्थान सरकार के आदेश पर प्रोफेसर वोरा के खिलाफ धारा 295 और 153 (ए) के तहत एफआईआर दर्ज हो गई। महिला मुद्दों पर बेहतरीन काम करने वाली स्थानीय आयोजक प्रगतिशील दार्शनिक सुधा चौधरी के खिलाफ प्रदर्शन हुए। ताज़ा ख़बर ये है कि प्रोफेसर अशोक वोरा पर एफआईआर हो गयी है। विश्वविद्यालय की ओर से थाने में शिकायत दर्ज कराई गई है। कुलपति ने एक सेंसर बोर्ड बना दिया है जो विश्वविद्यालय में होने वाले सभी व्याख्यानों की पूर्व प्राप्त लिखित प्रति की जांच करेगा। फिलहाल प्रो. वोरा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मांग की है उनके खिलाफ प्राथमिकी तब तक दर्ज न की जाए जबतक कि कोई अधिकारी विद्वान उनके भाषण की रिकार्डिंग सुनकर उसका अर्थापन न करे।
जन संस्कृति मंच, बहस की संस्कृति के विरोधी कुपढ़ संघ-गिरोह के इस हमले की निंदा करते हुए मांग करता है कि प्रोफेसर वोरा के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर तत्काल वापस ली जाये, संदर्भ से काटकर भड़काऊ बयान देने और छापने वालों के खिलाफ भी कार्यवाही की जाये। जन संस्कृति मंच तमाम लोकतांत्रिक और प्रगतिशील ताकतों से अपील करता है कि इस हमले के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करें और असहिष्णुता की लगातार घट रही घटनाओं पर जनमत बनाने की मुहिम को जारी रखें।
(जन संस्कृति मंच की ओर से मृत्युंजय द्वारा जारी)
No comments:
Post a Comment