प्रकाश उदय भोजपुरी के जाने पहचाने कवि हैं. वे बनारस में रहते हैं. उनकी कविता में वह ख़ास पन है जो सिर्फ और सिर्फ बनारस में ही मौजूद होता है.
आज पढ़िए उनकी कविता- "दुःख कहले सुनल से घटल बाड़े". इस कविता में शिव एक सामान्य गृहस्थ की तरह आते हैं, ज्ञानवापी में अल्ला के बगल में रहते हुए वे भी ज़िंदगी की सामान्यताओं में परेशान हैं. और सबसे बड़ी समस्या है कलश के छेद से सर पर टपकता पानी.
आवत आटे सावन शुरू होई नहवावन
भोला जाड़े में असाढ़े से परल बाड़ें
एगो लांगा लेखा देह, रखें राखी में लपेट
लोग धो-धा के उघारे पे परल बाड़ें
भोला जाड़े में...
ओने बरखा के मारे, गंगा मारे धारे-धारे
जटा पावें ना संभारे, होत जाले जा किनारे
शिव शिव हो दोहाई, मुंह मारी सेवकाई
उहो देवे पे रिजाईने अड़ल बाड़ें
भोला जाड़े में...
बाटे बड़ी बड़ी फेर, बाकी सबका ले ढेर
हई कलसा के छेद, देखा टपकल फेर
गौरा धउरा हो दोहाई, अ त ढेर ना चोन्हाईं
अभी छोटका के धोवे के हगल बाटे
भोला जाड़े में...
बाडू बड़ी गिरिहिथीन, खाली लईके के जिकिर
बाड़ा बापे बड़ा नीक, खाली अपने फिकिर
बाडू पथरे के बेटी, बाटे ज़हरे नरेटी
बात बाते-घाटे बढ़ल, बढ़ल बाटे
भोला जाड़े में...
सुनी बगल के हल्ला, ज्ञानवापी में से अल्ला
पूछें भईल का ए भोला, महकउला जा मोहल्ला
एगो माइक बाटे माथे, एगो तोहनी के साथे
भांग बूटी गांजा फेरू का घटल बाटे
भोला जाड़े में...
दुनू जना के भेंटाइल, माने दुःख दोहराइल
इ नहाने अंकुआइल, उ अजाने अउंजाइल
इ सोमारे हलकान, उनके जुम्मा लेवे जान
दुःख कहले सुनल से घटल बाड़े
भोला जाड़े में...
...प्रकाश उदय
शब्दार्थ:
1- आषाढ़ = बारिश का पहला महीना
2- लांगा लेखा = छरहरी
3- चोन्हाईं = अदा दिखाना
4- नरेटी = गला
5- ज्ञानवापी = बनारस में शिव मंदिर से लगी हुई मस्जिद
6- अंकुवाईल = अंकुरित होना
7- अउंजाइल = परेशान होना
आज पढ़िए उनकी कविता- "दुःख कहले सुनल से घटल बाड़े". इस कविता में शिव एक सामान्य गृहस्थ की तरह आते हैं, ज्ञानवापी में अल्ला के बगल में रहते हुए वे भी ज़िंदगी की सामान्यताओं में परेशान हैं. और सबसे बड़ी समस्या है कलश के छेद से सर पर टपकता पानी.
आवत आटे सावन शुरू होई नहवावन
भोला जाड़े में असाढ़े से परल बाड़ें
एगो लांगा लेखा देह, रखें राखी में लपेट
लोग धो-धा के उघारे पे परल बाड़ें
भोला जाड़े में...
ओने बरखा के मारे, गंगा मारे धारे-धारे
जटा पावें ना संभारे, होत जाले जा किनारे
शिव शिव हो दोहाई, मुंह मारी सेवकाई
उहो देवे पे रिजाईने अड़ल बाड़ें
भोला जाड़े में...
बाटे बड़ी बड़ी फेर, बाकी सबका ले ढेर
हई कलसा के छेद, देखा टपकल फेर
गौरा धउरा हो दोहाई, अ त ढेर ना चोन्हाईं
अभी छोटका के धोवे के हगल बाटे
भोला जाड़े में...
बाडू बड़ी गिरिहिथीन, खाली लईके के जिकिर
बाड़ा बापे बड़ा नीक, खाली अपने फिकिर
बाडू पथरे के बेटी, बाटे ज़हरे नरेटी
बात बाते-घाटे बढ़ल, बढ़ल बाटे
भोला जाड़े में...
सुनी बगल के हल्ला, ज्ञानवापी में से अल्ला
पूछें भईल का ए भोला, महकउला जा मोहल्ला
एगो माइक बाटे माथे, एगो तोहनी के साथे
भांग बूटी गांजा फेरू का घटल बाटे
भोला जाड़े में...
दुनू जना के भेंटाइल, माने दुःख दोहराइल
इ नहाने अंकुआइल, उ अजाने अउंजाइल
इ सोमारे हलकान, उनके जुम्मा लेवे जान
दुःख कहले सुनल से घटल बाड़े
भोला जाड़े में...
...प्रकाश उदय
शब्दार्थ:
1- आषाढ़ = बारिश का पहला महीना
2- लांगा लेखा = छरहरी
3- चोन्हाईं = अदा दिखाना
4- नरेटी = गला
5- ज्ञानवापी = बनारस में शिव मंदिर से लगी हुई मस्जिद
6- अंकुवाईल = अंकुरित होना
7- अउंजाइल = परेशान होना
5 comments:
मुझे भोजपुरी समझ भर ही आती है, फिर भी इस कविता को पढ़/समझ सका...साझा करने का शुक्रिया...मुझे ख़याल आता है, जब २००४ में मैं वागीश शुक्ल से लम्बी बातचीत के लिए उनके सम्मुख उपस्थित हुआ था तब उन्होंने यह पूछने पर कि इधर किस कवि की कविता पसंद आती है, प्रकाश उदय का ज़िक्र किया था...मुझे लगा वागीश जी उदय प्रकाश बोलना चाह रहे थे...टोकने पर उन्होंने कहा, ''नहीं भाई, उदय प्रकाश नहीं, प्रकाश उदय. बनारस में रहते हैं, भोजपुरी की कविताएं हैं उनकी, कभी पढियेगा ज़रूर''....आज आपके सौजन्य से प्रकाश उदय को पढ़ सका...पुनः शुक्रिया मृत्युंजय भाई
mujhe bhi bahut pasand aayi... mein bhojpuri bol, padh aur likh sakta hoon.; aapka shukriya
बहुत अच्छी पार्टनर....
gale lag jaao miyaan mirtubodh.kyaa kavoitaa ukhaadee hai. is kavi kee aur kavitaayen bhee lao. ekaadh to tun tarannum men bhee pesh kar sakate ho, apanee hee aawaaz menm. is khaas andaazebayaan kaa anuvaad duniyaa ki kisi doosaree jubaan men ho hee naheen sakataa.
गजब है भाई! आनन्द आ गया! भोला अब न परसनन्न भए त कबहूँ न हुइएं..
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