11/16/13

मुक्तिबोध के काव्य संसार की यात्रा-2 :कॉ. रामजी राय


‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ (त्याग के साथ उपभोग करो) के उपदेश से लेकर ट्रस्टीशिप तक के विचार हृदय परिवर्तन के सिद्धांत या समझ से जुड़े रहे हैं -कि धन से जुड़े मन को बदला जा सकता है। इस बाबत यह कहते हुए कि -‘‘कविता में कहने की आदत नहीं पर कह दूं/ वर्तमान समाज चल नहीं सकता/ पूंजी से जुड़ा हृदय बदल नहीं सकता...’’ मुक्तिबोध उस गांधी को भी वैचारिक-राजनीतिक धरातल पर खारिज करते हैं, जिनके अन्य गुणों को वे मानते और महत्व देते हैं। वे शायद ऐसा इसलिये करते हैं कि आर्थिक-राजनीतिक-सांस्थानिक एक शब्द में ठोस भैतिक समस्याओं का हल नैतिक-भावनात्मक स्तर पर नहीं दिया जा सकता। इसलिये और भी कि उन्हें गांधी से ही वह बच्चा मिलता है, जिसे उन्हें ‘संभालना व सुरक्षित रखना’ है। इस ‘भार का गंभीर अनुभव’ मुक्तिबोध को है और शब्दों की उस गुरुता का भी, जो कोई और नहीं गांधी की वह मूर्ति ही कहती है - ‘‘...भाग जा, हट जा/ हम हैं गुजर गये जमाने के चेहरे/ आगे तू बढ़ जा।’’ कविता की इन्हीं पंक्तियों के आगे की पंक्तियों में जब वे कहते हैं कि - ‘‘स्वातंत्र्य व्यक्ति का वादी/ छल नहीं सकता मुक्ति के मन को/ जन को’’ तब ऐसा कहते हुए वे व्यक्ति स्वातंत्र्य का नारा उछालने वाले अपने उन समकालीनों को ही निशाने में नहीं ले रहे बल्कि उस पूंजीतंत्र मात्र को निशाना बनाते हैं जो व्यक्ति स्वातंत्र्य का झंडा लेकर आया लेकिन जिसकी स्वतंत्रता ‘इत्यादि जन’(मुक्तिबोध का शब्द) की परतंत्रता बन गई।

एक और स्तर पर मुक्तिबोध ने रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी से लेकर जयशंकर प्रसाद कि आलोचना की है वह है उन लोगों के द्वारा साभ्यतिक प्रश्नों-समस्याओं, नवीन भारतीय राज-समाज को अ-यंत्र युग, ग्राम-समाज, ग्राम-स्वराज्य(आज का पंचायती राज) आदि के आधारों और वर्ग-संघर्ष रहित वर्ग-सहयोग, वर्ग-समन्वय और शांति के रास्ते से बनाने के विचार की। 

- ‘‘सुकोमल काल्पनिक तल पर/ नहीं है द्वन्द्व का उत्तर/ तुम्हारी स्वप्न वीथी कर सकेगी क्या......।’’ मैं इस सबके विस्तार में यहां नहीं जाना चाहता सिर्फ एक सवाल कि तो क्या मुक्तिबोध ऐसा इसलिये कहते-करते हैं कि वे मार्क्सवादी हैं और मार्क्सवाद ऐसा ही मानता और कहता रहा है? या इसे उन्होंने अपने जीवनानुभवों, अपने संवेदनात्मक ज्ञान व ज्ञनानात्मक संवेदन से गुजरते हुए, अपनी जीवन दृष्टि व विश्वदृष्टि का विस्तार करते उसकी रोशनी में जीवन-जगत की साभ्यतिक-समकालीन समस्याओं का विश्लेषण-संश्लेषण करते हुए उपलब्ध किया था? 

1 comment:

अजेय said...

सही लिखा है