11/28/10

शायरी मैंने ईजाद की - अफ़ज़ाल अहमद

 











शायरी मैंने ईजाद की

कागज़ मराकशियों ने ईजाद किया
हुरुफ फोनिशियों ने
शायरी मैंने ईजाद की

कब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर कब्जा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वालों ने कतार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा

रोटी की कतार में जब चीटियाँ भी आ खड़ी हो गयीं
तो फ़ाका ईजाद हुआ

शहतूत बेचने वालों ने रेशम की कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिबास बनाए
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया

फासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किये
तेज़ रफ्तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज़ रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया गया

मगर उस वक्त तक शायरी ईजाद हो चुकी थी
मोहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने खेमा और कश्तियाँ बनाईं
और दूर-दराज़ मकामात तय किये

ख्वाजासरा ने मछली पकड़ने का काँटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभो कर भाग गया

दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद की
और
ज़बर ने आख़िरी बोली ईजाद की

मैंने सारी शायरी बेचकर आग खरीदी
और ज़बर का हाथ जला दिया


...अफ़ज़ाल अहमद

11/27/10

की लाल? की लाल? (मैथिली) - नागार्जुन

आज मज़े के इस मूड में बाबा नागार्जुन याद आ गए! पढ़िए उनकी मैथिल कविता "की लाल! की लाल!".


की लाल? की लाल?

अढूलक फूल लाल !
आरतिक पात लाल !
तिलफ़ोड़क फSड लाल!
छऊडीक ठोर लाल !
सूगाक लोल लाल !
ई लाल! ओ लाल !

शोणित लाल, क्रान्ति लाल!
युद्धोत्तर शांति लाल !
रूसकेर देह लाल !
चीनकेर कोंढ़ लाल!
अमेरिकाक नाक लाल!
ब्रिटेनक जीह लाल !
ई! लाल! ओ लाल !

हम्मर मोसि लाल !
अहांक कलम लाल !
हिनकर पोथी लाल !
हुनक गत्ता लाल !
ककरो गाल लाल !
ककरो आंखि लाल !
ई लाल ! ओ लाल!

11/21/10

ख़ुदा, रामचंदर की यारी है ऐसी- विद्रोही

कबीर का तेवर देखना है तो आईये 'विद्रोही' के इलाके में. विद्रोही कविता जीते हैं, ओढ़ते-बिछाते हैं. कविता उनकी जिन्दगी है. बतियाते-गपियाते हुए विद्रोही ऐसा तीखा मज़ा लेते हैं कि धर्म-धुरंधरों के औसान खता हो जाते हैं. समाज के आख़िरी आदमी, खेत-मजदूर तक ये कविता बिना किसी विघ्न-बाधा, बिना किसी आलोचक सीधे पहुंचने की कूबत रखती है. कविता के नागर देश के बाशिंदों के लिए यह कविता थोड़ी नागवार गुजरेगी, पर इसके जिम्मेदार वे खुद ही हैं.
खैर, कविता ये रही. बोल कर पढेंगें, तो मज़ा बढ़ जायेगा, ऐसा मुझे लगा.

ख़ुदा, रामचंदर की यारी है ऐसी

पटाखा है ये और ये फुलझड़ी है,
ये दुनिया तुम्हारी ज़हर से भरी है.
यहां हर डगर पर कन्हैया खड़े हैं
कन्हैया खड़े हैं तो वंशी लिए हैं,
और काजल लगाए हैं, चंदन लिए हैं,
और नंगे हैं, पर पान खाए हुए हैं,
औ काजल लगाकर लजाए हुए हैं.

दुनिया की गाएं, इन्हीं की है गाएं,
कि दुनिया में चाहे जहां भी चराएं.
इधर देखिए रामचंदर खड़े हैं,
बगल में इन्हीं के लखन जी खड़े हैं,
बीच में उनके सीता माताजी खड़ी हैं.
ये सीताजी माताजी पूरी सती हैं,
ये पति के रहते भी बेपति हैं.

रोइये, रोइये! अब सभी रोइये!
राम, सीता, लखन, तीनो वन को चले हैं,
बे पैसे ही नारियों को तारते चले हैं,
मल्लाहों से पांव ये धुलाते चले हैं.
ये संतों-महंतों को देते चले हैं,
गरीबों, किसानों से लेते चले हैं.

प्रथम बाण से ये चमारों को मारें,
दूसरे बाण से ये गंवारों को मारें,
तीसरे बाण से जो बचा उसको मारें,
औरतों को तो अपने ही हाथों से मारें.

इधर देखिए ये ख़ुदा जी खड़े हैं,
ख़ुदा, रामचंदर से जैसे जुदा हैं,
ख़ुदा-रामचंदर में नुक्ते का अंतर,
ख़ुदा-रामचंदर हैं पूरे बराबर.
इधर रामचंद्र जी चंदन लिए हैं,
उधर से ख़ुदा जी भी टोपी लिए हैं.

कहां से नया बल ख़ुदा को हुआ है,
कब से हुए रामचंदर बहादुर?
ख़ुदा रामचंदर ये दोनों जने ही,
अमरीकी बुकनी की मालिश किए हैं,
ख़ुदा, रामचंदर ये दोनों हैं नंगे
पर पांवों में डालर की मालिश किए हैं.

...रमाशंकर यादव 'विद्रोही'