11/28/10

शायरी मैंने ईजाद की - अफ़ज़ाल अहमद

 











शायरी मैंने ईजाद की

कागज़ मराकशियों ने ईजाद किया
हुरुफ फोनिशियों ने
शायरी मैंने ईजाद की

कब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर कब्जा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वालों ने कतार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा

रोटी की कतार में जब चीटियाँ भी आ खड़ी हो गयीं
तो फ़ाका ईजाद हुआ

शहतूत बेचने वालों ने रेशम की कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिबास बनाए
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया

फासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किये
तेज़ रफ्तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज़ रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया गया

मगर उस वक्त तक शायरी ईजाद हो चुकी थी
मोहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने खेमा और कश्तियाँ बनाईं
और दूर-दराज़ मकामात तय किये

ख्वाजासरा ने मछली पकड़ने का काँटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभो कर भाग गया

दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद की
और
ज़बर ने आख़िरी बोली ईजाद की

मैंने सारी शायरी बेचकर आग खरीदी
और ज़बर का हाथ जला दिया


...अफ़ज़ाल अहमद

3 comments:

मनोज पटेल said...

शुक्रिया पार्टनर, यह कविता पढ़वाने के लिए. बहुत दिनों से इनकी किताब के चक्कर में हूँ मिल नहीं रही.

miracle5169@gmail.com said...

kya dard se vaabadtagi na ho to isako samajha ja sakta hai?nahi kbhi nahi.JIGARI isase do-char karwane ka dili-shukra.

rajani kant said...

एक अच्छी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद.